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Buffett Investment Tips: बफेट का नाम दुनिया के सबसे कामयाब निवेशकों में शुमार है. उनकी कुल संपत्ति 130 अरब डॉलर से भी ज्यादा है. (Reuters)
Buffer Golden Rule: वारेन बफेट (Warren Buffett) का नाम दुनिया के सबसे कामयाब निवेशकों में शुमार है. उनकी कुल संपत्ति 130 अरब डॉलर से भी ज्यादा है. लेकिन ये दौलत उन्हें सब कुछ जानने से नहीं, बल्कि कुछ खास चीजों को बहुत गहराई से समझने से मिली है. वो इसे कहते हैं- सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस (Circle of Competence) यानी आपकी समझ का दायरा. यही सोच उनकी हर निवेश रणनीति की नींव रही है.
शुरू करने से पहले ये साफ कर देना जरूरी है कि आगे जिन शेयरों का जिक्र इस लेख में है, वो सिर्फ उदाहरण के लिए हैं, किसी तरह की निवेश सलाह नहीं. अब बात करें भारत के युवा निवेशकों की, जो इन दिनों स्टार्टअप्स और क्विक-कॉमर्स कंपनियों की तेज रफ्तार में बह रहे हैं - जोमैटो (Zomato) जैसे दिग्गज या नई उभरती कंपनियों की ओर रुझान तेज है. ऐसे माहौल में सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस की सोच बेहद कारगर साबित हो सकती है.
क्योंकि जब आप ऐसे सेक्टर में निवेश कर रहे हों, जहां संभावनाएं और रिस्क दोनों भरपूर हों, तो ये समझना कि आप किसे वाकई समझते हैं - और किसे नहीं - लंबे समय में आपको बड़ा फायदा दिला सकता है. कह सकते हैं, ये आपकी निवेश सफलता का ‘गुप्त सूत्र’ बन सकता है.
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बफेट की सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस क्या है?
वारेन बफेट की निवेश रणनीति (Investment Tips) जितनी गहरी है, उतनी ही सीधी भी. उनका साफ मानना है कि उसी चीज में पैसा लगाओ जिसे तुम अच्छी तरह समझते हो यानी सिर्फ वही निवेश करें, जो समझ में आए. उनका मशहूर कोट्स है रिस्क कम्स फ्राम नॉट नोइंग व्हाट यू आर डूइंड (Risk comes from not knowing what you’re doin). यानी असली जोखिम वहीं होता है जहां आपको खुद नहीं पता कि आप क्या कर रहे हैं.
बफेट ने हमेशा ऐसे सेक्टर और कंपनियों में निवेश किया जिन्हें वो अंदर से जानते थे- जैसे बीमा और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स. उन्होंने लंबे समय तक टेक कंपनियों से दूरी बनाए रखी, क्योंकि वो उनके समझ के दायरे में नहीं थीं. कोका-कोला (Coca-Cola), अमेरिकन एक्सप्रेस (American Express) जैसी कंपनियों के साथ उन्होंने अपनी सफलता की नींव रखी क्योंकि ये उनके ‘सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस’ का हिस्सा थीं.
अब जरा भारत की तरफ नजर डालिए. यहां आजकल हर निवेशक स्टार्टअप्स की चमक-धमक में डूबा है और शायद इसमें कोई गलत भी नहीं. 2025 तक भारत में 100 से ज्यादा यूनिकॉर्न्स होंगे, और हर कोई इस रफ्तार से आगे निकलती दुनिया में अपनी जगह बनाना चाहता है. जोमेटो (Zomato) से लेकर क्विक डिलीवरी ऐप्स और इलेक्ट्रिक व्हीकल स्टार्टअप्स तक जो नया है, वो हॉट है.
लेकिन बफेट शायद यहां एक चेतावनी देंगे कि अगर किसी कंपनी का बिजनेस मॉडल आपको समझ ही नहीं आता, तो आप निवेश नहीं कर रहे आप बस जुआ खेल रहे हैं. इसलिए अगर आप वाकई लंबी दौड़ में टिके रहना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपना 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' पहचानिए. निवेश वहीं कीजिए, जहां समझ साफ हो - वही रास्ता वाकई दौलत तक जाता है.
स्टार्टअप्स रेस में शामिल भारत: खजाना या खतरा?
भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम इन दिनों अपने चरम पर है. स्विगी (Swiggy), पेटीएम (Paytm), नाइका (Nykaa) जैसे नाम निवेशकों के बीच चमकते सितारे बन चुके हैं. Tracxn के आंकड़ें बताते हैं कि 2024 में भारतीय स्टार्टअप्स ने 20 अरब डॉलर से ज्यादा की फंडिंग जुटाई.
युवा निवेशकों में जोश भी खूब है. हर कोई चाहता है कि इस नए दौर की चमक-धमक में उसकी भी हिस्सेदारी हो. लेकिन जरा ठहरिए, कहानी इतनी सीधी भी नहीं है. इनमें से कई कंपनियां अभी मुनाफा नहीं कमा रही हैं. उनका बिजनेस मॉडल क्या है, वे सच में कैसे पैसे कमाएंगी - ये समझना कई बार आसान नहीं होता.
उदाहरण के लिए, क्विक-कॉमर्स कंपनियों को ही लीजिए जो दावा करती हैं कि 10 मिनट में सामान आपके दरवाजे पर पहुंच जाएगा. लेकिन इस स्पीड के पीछे जो लागत है, वो इन कंपनियों की जेब में जबरदस्त छेद कर रही है.
क्या ये कंपनियां लंबे समय में टिक पाएंगी?
अगर इसका जवाब आपको भी नहीं सूझ रहा, तो शायद आपको उस मॉडल की पूरी समझ नहीं है और यही बात वारेन बफेट हमें सिखाते हैं. बफेट की सोच हमेशा साफ रही है - "क्या मैं जानता हूं कि ये कंपनी पैसा कैसे कमाती है? क्या मैं इसकी 10 साल की तस्वीर समझ सकता हूं? अगर जवाब ‘नहीं’ है, तो वो भले ही स्टॉक कितना भी लुभावना लगे, उससे दूर ही रहते हैं.
भारत के संदर्भ में इसका मतलब है - जुनून को थोड़ी लगाम देना और उसी जगह निवेश करना जहां आपकी समझ पक्की हो. जो दिखता है, वो हमेशा टिकता नहीं. और जो टिकता है, वो अक्सर अंदर से मजबूत होता है.
भारत में अपना ‘सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस कैसे पहचानें?
निवेश की दुनिया में वारेन बफेट का ये सिद्धांत बेहद अहम है. आपका 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' यानी वो दायरा, जहां आप सबसे ज्यादा सहज, सबसे ज्यादा जानकार हैं. ये आपकी जिंदगी के अनुभवों, पढ़ाई, और आपकी दिलचस्पियों से बनता है.
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में, हर व्यक्ति की पृष्ठभूमि अलग है और यही उसकी ताकत भी हो सकती है. जैसे मान लीजिए, कोई शख्स ग्रामीण भारत से है और खेती-किसानी के माहौल को करीब से समझता है. उसे मौसम की मार, बीज की क्वालिटी, और मंडियों की हकीकत अच्छे से पता है. ऐसा इंसान देहात (DeHaat) या निंजाकॉर्ट (Ninjacart) जैसे एग्रीटेक स्टार्टअप्स को अच्छी तरह समझ सकता है वो जान सकता है कि ये कंपनियां किसानों की असली समस्याएं कैसे हल कर रही हैं, और उनमें आगे बढ़ने की कितनी संभावना है. लेकिन वही इंसान अगर किसी अर्बन क्विक-कॉमर्स कंपनी, जैसे Zepto की बात करे जो शहरी लोगों की 10 मिनट में ग्रॉसरी डिलीवरी की चाहत पर टिकी है,तो शायद उसे उस बिजनेस की जमीनी समझ न हो.
अब आइए एक और उदाहरण लें एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का. उसका 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' होगा IT इंडस्ट्री - Infosys, TCS जैसे नाम जहां वो इंडस्ट्री ट्रेंड्स, टेक्नोलॉजी शिफ्ट्स (जैसे क्लाउड या AI) को बेहतर समझता है. वो यह आंक सकता है कि कौन सी कंपनी सही दिशा में बढ़ रही है. लेकिन अगर वही इंसान किसी बायोटेक स्टार्टअप में निवेश करना चाहे, जो जीन एडिटिंग जैसे जटिल विज्ञान पर काम कर रहा है तो ये उसके अनुभव से बाहर की चीज हो सकती है, जब तक उसने खुद उसमें गहराई से पढ़ाई या काम न किया हो. इसलिए बफेट यही कहते हैं उस जगह निवेश करो, जहां तुम्हारी समझ सबसे मजबूत हो. बाकी जगहों में बस भीड़ के पीछे भागना समझदारी नहीं, जुआ है.
क्यों जरूरी है समझदारी से निवेश करना?
वारेन बफेट की 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' की थ्योरी सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं है. ये उतनी ही ताकतवर है नुकसान से बचने के लिए भी. साल 2021 में भारत में लाखों निवेशक क्रिप्टो की चकाचौंध में बह गए. हर तरफफ कहानियां थीं - रातों-रात करोड़पति बनने की. लेकिन 2022 में जब बाजार पलटा, तो अरबों रुपये हवा हो गए. बफेट ने क्रिप्टो को पहले ही मृगतृष्णा (mirage) कहकर खारिज कर दिया था. वजह साफ थी - वो इसे समझते नहीं थे, इसलिए उससे दूर रहे.
भारत में यही कहानी स्टार्टअप्स के साथ भी दोहराई गई. कोविड के दौरान ऐडटेक (Edtech) कंपनियों में जैसे पैसा बरसने लगा Byju’s जैसी कंपनियां आसमान छू रही थीं. लेकिन जब उनका तेज विस्तार थमा, तो उनकी वैल्यू भी नीचे गिर गई. कई निवेशकों ने बिना समझे सिर्फ हाइप यानी चमक-धमक के बेसिस पर पैसा लगाया और जब असलियत सामने आई, तो हाथ जल गए.
असल दिक्कत वहां आती है, जहां हम किसी कंपनी की कमाई का असली तरीका नहीं समझते. Edtech कंपनियां असल में जबरदस्त मार्केटिंग पर चल रही थीं. मुनाफे की नींव उतनी मजबूत नहीं थी. अगर ये बात पहले से समझ होती, तो शायद नुकसान से बचा जा सकता था. बफेट की सलाह बेहद सीधी है - अगर कोई कंपनी आपके लिए रहस्य है, तो उसमें पैसा मत लगाइए, चाहे वो कितनी भी रोमांचक क्यों न लगे.
निवेश में समझदारी का मतलब ये नहीं कि आप हर चमकती चीज के पीछे भागें. असली चालाकी ये है कि आप जानते हों कहां नहीं जाना है.
आज के बाजार में ‘सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस’ कैसे काम करता है?
अब जरा इस थ्योरी को हकीकत में उतरते हुए देखिए. सोचिए, आपके सामने दो स्टॉक्स हैं- दोनों ही अपने ऑल टाइम हाई से 40-45% नीचे हैं. कागज पर ये आपको ‘सस्ते सौदे’ लग सकते हैं लेकिन वारेन बफेट ऐसे मौकों पर एक सीधा सवाल पूछते - क्या आपको सच में पता है कि ये कंपनियां करती क्या हैं?
अब मान लीजिए, पहली कंपनी एग्रीटेक स्पेस में है. यानी खेती के कामों को टेक्नोलॉजी से ऑटोमेट कर रही है. अगर आपका जुड़ाव खेती से रहा है, तो आप जानते हैं कि भारत की 400 अरब डॉलर की एग्रीकल्चर इंडस्ट्री में कितनी संभावनाएं हैं, और साथ ही कितनी समस्याएं भी. कम पैदावार, मौसम की मार, महंगे इनपुट. अगर ये कंपनी इन समस्याओं का सॉल्यूशन बना रही है, तो आपके लिए ये एक बड़ा मौका (गोल्डमाइन यानी खजाना) हो सकती है.
अब आइए दूसरी कंपनी पर नजर डालते हैं ये एक नई फिनटेक स्टार्टअप है, जो BNPL (Buy Now Pay Later) मॉडल पर चल रही है. कागज पर ये रोमांचक लग सकती है, लेकिन अगर आपको ये नहीं समझ आ रहा कि ये बिजनेस पैसे कैसे कमाएगा, या कैसे NPA और रेगुलेशन से बच पाएगा, तो फिर सच कहें - ये स्टॉक आपके समझ के बाहर है. और बफेट यही कहते हैं कि अगर आप किसी चीज को नहीं समझते, तो उससे दूरी बेहतर है. कम कीमतों पर हर स्टॉक मौके का नाम नहीं होता. समझदारी वहीं है, जहां आपकी समझ गहराई से हो. बफेट का कमाल यही है कि वो सस्ते स्टॉक्स के जाल में नहीं फंसते, वो सिर्फ वहीं पैसा लगाते हैं जहां हर रुपये का मक़सद उन्हें साफ़ दिखाई देता है.
खुद का सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस कैसे बनाएं?
आप किस चीज को अच्छी तरह समझते हैं. ये कोई जन्म से तय की गई बात नहीं है. जैसे कसरत से मसल्स बनते हैं, वैसे ही मेहनत से समझदारी भी बनती है. वारेन बफेट इसका जिंदा उदाहरण हैं. हर दिन घंटों पढ़ते हैं - अखबार से लेकर सालाना रिपोर्ट्स तक ताकि उनकी समझ और तेज होती रहे.
आप भी ऐसा कर सकते हैं. शुरुआत करें उन कुछ सेक्टरों से, जो आपको दिलचस्प लगते हैं. उनके बारे में लेख पढ़िए, लेटेस्ट अपडेट्स फॉलो कीजिए, और BSE या NSE पर कंपनियों की सालाना रिपोर्ट्स पर नजर डालिए.
मसलन, अगर आपको कंज्यूमर प्रोडक्ट्स पसंद हैं तो Colgate-Palmolive, ITC जैसी कंपनियों को देखें. इनकी कमाई कैसे होती है? किन दिक्कतों से ये जूझती हैं? धीरे-धीरे आपकी पकड़ मजबूत हो जाएगी.
अगर आपको ग्रीन एनर्जी में दिलचस्पी है, तो किसी इंडस्ट्री प्रोफेशनल से बात कीजिए. सोलर पैनल्स की लागत क्या है? सरकारी नीतियां क्या कहती हैं? जितनी गहराई से आप जानेंगे, आपका सर्कल उतना बड़ा होगा.
लेकिन साथ ही बफेट की एक और अहम बात न भूलें जो चीज नहीं समझ आती, उसे स्वीकारिए. हर चीज को समझना जरूरी नहीं, पर जो आप समझते हैं उसमें महारथ होना जरूरी है.
बफेट की खरी नसीहत - आसान को आसान रहने दो
वारेन बफेट की 'सर्कल ऑफ कॉम्पिटेंस' थ्योरी हमें ये नहीं कहती कि आपको हर चीज में माहिर बनना है. बल्कि वो कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि आपका सर्कल कितना बड़ा है, जरूरी ये है कि आप जानते हों उसकी सीमाएं कहां तक हैं. यानी आपको ये पता होना चाहिए कि आप किस हद तक समझदार हैं, और कहां आपकी समझ खत्म हो जाती है.
भारत में आजकल स्टार्टअप्स की रफ्तार जबरदस्त है. हर हफ्ते कोई नया नाम, नया आइडिया, नई उम्मीद. ऐसे माहौल में बफेट की ये बात एक ठंडी हवा की तरह है. हर चमकते स्टार्टअप के पीछे दौड़ने की जरूरत नहीं.
जो चीजें आप समझते हैं जैसे खेती की टेक्नोलॉजी, कंप्यूटर से जुड़ा काम, या परंपरागत फाइनेंस की दुनिया. उनमें गहराई से सोचिए, सीखिए और निवेश करिए. कम जानिए, लेकिन ठीक से जानिए. ऐसा करने से आपके फैसले साफ़ होंगे, रिस्क कम होगा, और पैसे लगाने का भरोसा ज्यादा होगा. और जाते-जाते बफेट की एक लाइन याद रखिए जो निवेश में भी और जिंदगी में भी काम आती है. अगर आप किसी गड्ढे में फंसे हैं, तो सबसे पहले खुदाई बंद कर दीजिए.
(Article by Suhel Khan)